तो आरम्भ करता हूँ एकदम शुरुआत से।।
लोमहर्षण ऋषि के पुत्र उग्रश्रवा जी, जो की सूतवंश के श्रेष्ठ पौराणिक* थे, उस वक़्त नैमिषारण्य में आते हैं, जब नैमिषारण्य के कुलपति शौनक जी वहां बारह वर्षों का सत्संग कर रहें हैं।।
उग्रश्रवा ऋषि जी कहते हैं .....
उग्रश्रवा जी कहते हैं.....
गणेश जी ने कहा
उनको देखते हीं वहां मौजूद सारे ऋषिगण उनके आस-पास आकर उन्हें घेर लेते हैं।
वो उनसे उनकी चित्र- विचित्र कथाओं को सुनने के लिए उत्सुक थे।और उचित आदर सत्कार करने के बाद वो उनसे पूछतें हैं...
"बताएं आप अभी कहाँ से आ रहें हैं और आपने अब तक का अपना समय कहाँ बिताया है...."*
उग्रश्रवा ऋषि जी कहते हैं .....
"मैं राजा जनमेजय के सर्प यज्ञ से आ रहा हूँ और वहां मैंने श्री वैशम्पायन जी के मुख से श्री कृष्णद्वैपायन जी के द्वारा निर्मित * महाभारत ग्रन्थ की अनेकों पवित्र और विचित्र कथाएं सुनी..."
ये बात सुनते हीं वहां मौजूद सारे ऋषिगण* उनसे उन कथाओं को सुनाने की प्रार्थना करने लगते हैं....
उग्रश्रवा जी कहते हैं.....
वेद व्यास जी ने जब वेदों का विभाजन करके मन हीं मन में महाभारत की रचना कर ली तो उन्हें चिंता हुई
अब जब मैंने एक ऐसे ग्रन्थ की रचना कर ली है तो इसे अपने शिष्यों को पढ़ाऊं कैसे!!!
तो व्यास जी के उत्तम ख़याल को सुन कर स्वयं ब्रह्मा जी उनके पास आये.
ब्रह्मा जी को देख कर बड़े प्रसन्नभाव से, वहां मौजूद और ऋषिगणों के साथ, उन्होंने हाँथ जोड़ कर उन्हें प्रणाम किया, और कहा
" हे भगवान मैंने एक बड़े उत्तम काव्य की रचना की है जिसमे वैदिक और लौकिक सभी विषय हैं. इसमें वेद उपनिषद के साथ इतिहास, भूगोल, पुराण भूतादि के अलावा युद्ध कौशल, विविध भाषा, विविध जाती और उनके लोक व्यवहार के साथ देवताओं, मनुष्यों की उतपत्ति आदि सभी विषयों का वर्णन है मगर पृथवी में कोई इसे लिखने वाला नहीं मिलता…"
ब्रह्मा जी ने उन्हें गणेश जी का आह्वान करने के लिए कहा.
ब्रह्मा जी ने उन्हें गणेश जी का आह्वान करने के लिए कहा.
उन्होंने गणेश जी की स्तुति की और गणेश जी प्रकट हुए.
वेद व्यास जी ने कहा
" भगवान मैंने मन हीं मन में महाभारत की रचना कर ली है!! मैं बोलता जाता हूँ आप इसे लिख लीजिए. ..."
गणेश जी ने कहा
"ठीक है मगर अगर मेरी कलम एक छण के लिए भी रुकी तो मैं लिखना छोड़ दूंगा.."
व्यास जी ने कहा
व्यास जी ने कहा
"ठीक है मगर बिना समझे मत लिखियगा .."
और इसी सम्बन्ध में व्यास जी ने प्रतिज्ञापूर्वक कहा है कि
और इसी सम्बन्ध में व्यास जी ने प्रतिज्ञापूर्वक कहा है कि
" एक लाख श्लोकों में आठ हज़ार आठ सौ श्लोक ऐसे हैं जिनका मतलब मैं जानता हूँ, शुकदेव जी* जानते हैं , संजय जानते हैं की नहीं इसका निश्चय नहीं है…"
और इस तरह जब तक गणेश जी उन श्लोकों का अर्थ निकालते तब तक व्यास जी और अनेकों श्लोकों की रचना कर लेते और इस तरह से ये गाडी चल पड़ी....
क्रिकेट मैच "एक लघु कथा"
और इस तरह जब तक गणेश जी उन श्लोकों का अर्थ निकालते तब तक व्यास जी और अनेकों श्लोकों की रचना कर लेते और इस तरह से ये गाडी चल पड़ी....
क्रिकेट मैच "एक लघु कथा"
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