तो शरुआत होती है सर्पयज्ञ की कहानी से. आप ध्यान दे ये कहानी flashback में चल रही है.
तो उग्रश्रवा ऋषि जी ने आगे बोलना शुरू किया....
एक बार जनमेजय...
पिल्ले ने कहा
वो कोई जवाब नहीं दे पाये।
तब कुतिया ने जिसका नाम सरमा* था कहा
श्रुतश्रवा जी ने कहा कहा
तो उग्रश्रवा ऋषि जी ने आगे बोलना शुरू किया....
एक बार जनमेजय...
( जो नहीं जानते हैं मैं बता दूँ की ये राजा जनमेजय प्रशिद्ध पांडव अर्जुन के पोते हैं। उनके पिता का नाम परीक्षित था जो की अभिमन्यु के पुत्र थे, परीक्षित मृत पैदा हुए थे क्योंकि अश्वथामा ने अपना ब्रह्माश्त्र उत्तरा, जो की अभिमन्यु की बीवी थी, के गर्भ पे छोड़ दिया था. उन्हें कृष्ण ने जीवित किया था )*...
तो राजा जनमेजय एक बार अपने भाइयों के साथ कुरुक्षेत्र में यज्ञ कर रहे थें उस वक़्त वहां पे एक कुत्ते का बच्चा आया जिसे जनमेजय के भाइयों ने पीट दिया.
वो पिल्ला रोता रोता अपनी माँ के पास पहुँचा। रोते चिल्लाते उस पिल्ले से उसकी माँ ने पुछा
" बेटा तुझे किसने मारा है और तू क्यों रोता है..."
पिल्ले ने कहा
" मुझे जनमेजय के भाइयों ने मारा है...."
कुतिया बोली
कुतिया बोली
" जरूर तुमने उनका कुछ न कुछ अपराध किया होगा"
पिल्ले ने कहा
पिल्ले ने कहा
" नहीं माँ!! ना तो मैंने यज्ञ के हविष्य की और देखा और न हीं किसी वस्तु को चाटा है.. मैंने कोई अपराध नहीं किया है "
यह सुन कर कुतिया यज्ञस्थल पे पंहुची और उसने जनमेजय के भाइयों को* पुछा
यह सुन कर कुतिया यज्ञस्थल पे पंहुची और उसने जनमेजय के भाइयों को* पुछा
"मेरे बेटे ने न तो किसी वस्तु की और देखा और न हीं किसी चीज़ को चाटा है..... उसने कोई अपराध नहीं किया उसके बावजूद तुमलोगों ने उसे क्यों मारा ?? "
वो कोई जवाब नहीं दे पाये।
तब कुतिया ने जिसका नाम सरमा* था कहा
"तुमलोगों ने बिना किसी अपराध के मेरे पुत्र को मारा है इसलिए अब तुमलोगों पे कोई भारी संकट आएगा …"
कुतिया का श्राप सुन कर राजा जनमेजय और उनके भाई डर गए और वो श्राप के अनिष्ट को टालने के लिए किसी योग्य पुरोहित की तलाश में लग गये.
एक दिन जंगल में शिकार खेलते खेलते राजा जनमेजय श्रुतश्रवा जी के आश्रम में पहुंचे।
कुतिया का श्राप सुन कर राजा जनमेजय और उनके भाई डर गए और वो श्राप के अनिष्ट को टालने के लिए किसी योग्य पुरोहित की तलाश में लग गये.
एक दिन जंगल में शिकार खेलते खेलते राजा जनमेजय श्रुतश्रवा जी के आश्रम में पहुंचे।
उन्हें श्रुतश्रवा जी के पुत्र सोमश्रवा जी बड़े अच्छे लगें और उन्होंने श्रुतश्रवा ऋषि से निवेदन किया वो उन्हें अपने पुत्र सोमश्रवा जी को अपना पुरोहित बनाने की आज्ञा दे .
जनमेजय जी ने श्रुतश्रवा जी से कहा
जनमेजय जी ने श्रुतश्रवा जी से कहा
" ऋषि!! आपके पुत्र मेरे पुरोहित बने !!!"
श्रुतश्रवा जी ने कहा कहा
" मेरा पुत्र बड़ा तपस्वी है और स्वाध्यायसमपन्न है .. यह सारे अनिष्टों को शान्त कर सकता है.... सिर्फ महादेव जी का श्राप मिटाने में ये असमर्थ है!!! परन्तु याद रखो कि इसका एक गुप्त व्रत है की यदि कोई ब्राह्मण इससे कोई चीज़ मांगेगा तो वो उसे मना नहीं कर सकेगा। यदि तुम ऐसा कर* सको तो इसे अपने साथ ले जाओ... "
जनमेजय जी बड़ी इज़्ज़त के साथ सोमश्रवा जी को अपने साथ ले आएं और अपने भाइयों से कहा
जनमेजय जी बड़ी इज़्ज़त के साथ सोमश्रवा जी को अपने साथ ले आएं और अपने भाइयों से कहा
"देखो!! इन्हे मैंने अपना पुरोहित बनाया है और अब तुमलोग भी बिना विचार* के हीं इनकी आज्ञा का पालन करना ...."
और इसके बाद कहते हैं की उन्होंने तक्षशिला पे चढ़ाई की और उसे जीत लिया....
और इसके बाद कहते हैं की उन्होंने तक्षशिला पे चढ़ाई की और उसे जीत लिया....
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