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Saturday, January 3, 2015

समुद्र मंथन*!!! Episode 6

मेरु नामक एक पर्वत है जो इतना चमकीला है कि मानो तेज की राशि का हीं बना हो.

उसी पे बैठ कर एक दिन सारे देवता अमृत प्राप्ति के बारे में विचार कर रहें  थे. उनके साथ ब्रह्मा जी और नारायण भी थे . नारायण ने देवताओं को कहा

" देवता और असुर मिलकर अगर समुद्र मंथन करेंगे तो उससे अमृत की प्राप्ति होगी"

देवताओं ने मन्दराचल पर्वत को उखाड़ कर उसी से समुद्र मथन करने के सोचीं. लेकिन जब पूरी ताकत लगाने के बाद भी जब वो पर्वत नहीं उखाड़ पाये तो उन्होंने भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी से प्रार्थना की.

 तब उन्होंने शेषनाग को इस पर्वत को उखाड़ने की आज्ञा दी. 

शेषनाग ने अपना पूरा बल लगा कर वन और वन-वासियों* के साथ इस मन्दराचल पर्वत को उखाड़ लिया.

अब मन्दराचल पर्वत को लेकर वो समुद्र तट पे पहुंचे और वहाँ पहूँच कर समुद्र से कहा

"हमलोग तुम्हारा मंथन करकर अमृत निकालेंगे "

इस पर समुंद्र ने कहा*

"अगर आपलोग मुझे भी थोड़ा अमृत देंगे तो इस मंथन से जो कष्ट होगा वो मैं बर्दाश्त कर लूँगा "

देवतागण इसके लिए तैयार हो गए।।।।

अब मंथन के लिए उन्होंने वासुकि नाग जी को रस्सी बनने के लिए और कच्छप राज को आधार बनने लिए प्रार्थना की.

आप क्रिएटिविटी देखिये!!!


तो इस तरह वासुकि नाग को रस्सी, मन्दरांचल पर्वत को मथनी और  कच्छप राज को बेस या आधार बनाकर समुद्र मंथन शुरू हुआ !!!!!

अब देवता-गण वासुकि नाग के पूँछ की तरफ थे और असुर मुँह की तरफ!!! *

बार बार रगड़े जाने के कारण वासुकि नाग के मुख से धुँआ और अग्नि निकलती जो ऊपर आकाश में जाकर मेघ बन जाती और जिससे बड़ी शीतल बारिश होती जो मंथन करने वालों के थकान को काम कर देती।।।

मंथन  से मन्दरांचल पर्वत के पेड़ों से फूल झड़- झड़ कर गिरने लगें।।।। 

इस तरह इस मंथन से मन्दरांचल पर्वत के वनो के वृक्षों से रस और दूध चू चू कर समुद्र में मिलने लगे. और धीरे धीरे पूरा समुद्र दूध बन गया और फिर दूध से घी बनने लगा।।।

धीरे धीरे सारे देवता और असुर,  सिवाय  नारायण के, सभी थक गए तो ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु से मंथन करने वालों को बल देने को कहा.....

 विष्णु भगवान ने कहा

" अच्छा मैं अब आप सभी लोगों में दुबारा बल देता हूँ।।। अब आपलोग थोड़ा अपनी पूरी ताकत लगा कर जरा जोर-जोर से घूमावें और समुद्र को क्षुब्द्ध कर दे !!!"

फिर क्या था!!  

सारे देवताओं और असुरों ने मिलकर एक बार फिर से दुबारा पूरा जोर लगा कर मंथन शुरू किया,  जिससे सारा समुद्र क्षुब्द्ध हो गया।

तब उस समुद्र से अनगिणत किरणों वाला शीतल प्रकाश से युक्त, श्वेतवर्ण का चन्द्रमा उत्त्पन्न हुआ।  

चन्द्रमा के बाद भगवती लक्ष्मी और सूरा देवी ( दोनों साथ निकली थोड़ा ध्यान दे !!) निकली  

उसी समय उच्चेःश्रवा नामक घोडा निकला. 

फिर भगवान नारायण के वक्ष स्थल पर शुशोभित होने वाला कौस्तुभ मणि और फिर वांछित फल देने वाला कल्प वृक्ष और कामधेनु गाय भी निकले. 

लक्ष्मी, सूरा देवी, चन्द्रमा और उच्चैश्रवा ये सभी आकाश मार्ग से देवतालोक में चले गये.

 उसके बाद दिव्य शरीरधारी धन्वन्तरि देव प्रकट हुए जो अपने हांथो में श्वेत कमंडल में अमृत धारण किये हुए थे .

इसी मंथन से कालकूट विष निकला जिसे सभी के आग्रह पे भगवान शिव ने अपने गले में धारण  किया, जिसके कारण उनका गाला नीला हो गया और वो नीलकंठ के नाम से प्रसिद्द हुए.

अब अमृत और लक्ष्मी को देख कर दानवों में कोलाहल मच गया और 

ये मेरा है ये मेरा है कह कर वहां पे झगड़ा शुरू हो गया... 

तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर असुरों से अमृत कलश ले लिया और देवताओं ने उनके पास जा कर अमृत पी लिया.

राहु और केतु नामक दो असुर भी देवताओं का भेस बना कर अमृत पीने लगे मगर सूर्य और चन्द्रमा ने उनका भेद खोल दिया. 

इस बात पे भगवान विष्णु ने अपने चक्र से उनका गला काट दिया और तब से आज तक राहु और केतु की सूर्य और चन्द्रमा से  दुश्मनी है.

इसके बाद एक भयंकर संग्राम हुआ देवताओं और असुरों के बीच जिसमे देवताओं की जीत हुई.*

और इसके बाद मन्दरांचल पर्वत को पूरे सम्मान के साथ वापस अपने जगह पे पंहुचा दिया गया और सारे देवता अपने अपने लोकों में चले गये. 

 देवताओं और इंद्र ने अमृत भगवान नर को दे दिया.

यही है समुद्र मंथन की कहानी!!!  



   

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