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Saturday, January 3, 2015

तीन चेले and the first villain * ... एपिसोड 3

उन्हीं दिनों वहां आयोदधौम्य नामक एक और ऋषि रहा करते थे जिनके बहत सारे शिष्यों में तीन प्रमुख शिष्य थे, आरुणि, उपमन्यु और वेद.

आरुणि* जो की पांचाल देश का रहने वाला था, उसे एक दिन  ऋषि ने खेत के मेड़ों की रक्षा करने भेजा।

बहुत प्रयत्नों के बावजूद जब वो मेड को बारिश के पानी के प्रकोप से नहीं बचा पाया तो वो खुद हीं मेड बनकर लेट गया.

बहुत देर तक आरुणि को आश्रम में न देख कर जब ऋषि ने आरुणि के बारे में पुछा तो शिष्यों ने कहा

" गुरूजी  आपने हीं तो उसे खेतों के मेड की रक्षा में भेजा है… " 

तब ऋषि ने अपने शिष्यों से कहा 

"चलो!!  उसके के पास चलते हैं" 

और खेत के पास आ कर वो पुकारने लगे 

" बेटा आरुणि!! बेटा आरुणी तुम कहाँ हो... मेरे पास आओ!! "

गुरु की आवाज़ सुन कर आरुणि उठ खड़ा हुआ और  आकर उनसे बोला... 

" भगवान मैं यहाँ हूँ!! जब मैं किसी भी प्रयत्न से मेड को बारिश के प्रकोप से नहीं बचा पाया तो मैं खुद हीं मेड बन कर लेट गया और जब मैंने ये एकाएक आपकी आवाज़ सुनी तो मैं मेड को तोड़ कर उठ खड़ा हुआ और अब फिर से आपकी सेवा में उपस्थित हूँ … आप आज्ञा करें ..."

गुरु ने कहा 

" बेटा तुम मेड़ों का उद्यल्लन ( तोड़-ताड़) कर खड़े हुए हो इसलिए आज से तुम्हारा नाम उद्दालक होगा और चूँकि तुमने मेरी आज्ञा का पालन किया है इसलिए तुम्हे सारे वेद और धर्मशास्त्र का ज्ञान बिना पढ़े* हीं हो जाएगा....  " 

गुरु का आशीर्वाद पाकर वो अपने अभिस्ट स्थान पे चला गया . *

दूसरा शिष्य था उपमन्यु।  उसकी कहानी थोड़ी  ज्यादा मज़ेदार है...

आचार्य ने उसे गायों की रक्षा का काम दिया. 

वो दिन भर गाय चराता और शाम को वापस आश्रम में आ जाया करता। आचार्य ने एक दिन उससे पुछा

" बेटा तुम बड़े स्वस्थ और बलवान दिखते हो।। खाते क्या हो??? "

उपमन्यु ने कहा 

"आचार्य मैं नगर में भिक्षा मांग कर खा लेता हूँ ..."

आचार्य ने कहा

 " बेटा तुम्हे बिना मुझे निवेदन किये भिक्षा नहीं खानी चाहिए..."

अगले दिन से उपमन्यु अपनी सारी भिक्षा ला कर उन्हें निवेदित कर देता और गुरु भी सारी भिक्षा खुद हीं रख लेते ... 

कुछ दिनों बाद  दुबारा उसे उतना हीं स्वस्थ देख गुरु ने पुछा 

"बेटा तुम्हारी सारी भिक्षा तो मैं रख लेता हूँ;  तुम अब क्या खाते हो ..."

उपमन्यु ने कहा 

"मैं आपको निवेदित करने के बाद दुबारा जा कर भिक्षा मांग लेता हूँ ... " 

यह सुन कर गुरु ने कहा 

"बेटा ऐसा करना तो अन्तेवासी ( जो गुरु के साथ रह कर पढता हो) के लिए बहूत हीं अनुचित बात है... इससे तो  गृहस्थों के ऊपर दुगना बोझ पड़ता होगा और ऐसा कर कर तुम बाकी विद्यार्थियों के जीविका में भी अड़चन डालते होगे और इसमें तुम्हारा लोभी स्वाभाव भी छलकता है...

कुछ दिनों के बाद शाम में उसे गाय चराकर लौटते देख गुरु  ने उससे पुछा 

"बेटा तुम्हारी सारी भिक्षा तो अब मैं रख लेता हूँ,  दुबारा तुम भिक्षा मांगते नहीं फिर तुम क्या खाते पीते हो क्योंकि तुम तो अभी भी उतने हीं मोटे-ताजे दीखते  हो " 

 उपमन्यु ने कहा 

"महाराज मैं गायों का दूध पी लेता हूँ "

गुरु ने कहा 

" बिना मेरी आज्ञा के गायों का दूध पीना तो बिलकुल भी उचित नहीं हैं... " 

फिर कुछ दिनों के बाद उसे वैसे हीं स्वस्थ देखकर गुरु ने फिर पुछा 

"अब तुम क्या खाते हो !!! " 

उपमन्यु ने कहा 

" मैं अब जब ये बछड़े माँ का दूध पीते-पीते जो फेन उगल देतें हैं,  मैं वो पी जाता हूँ ..."

"राम राम !!!!"

"ये बछड़े तो तुम पर तरस खा कर ज्यादा हीं फेन उगल देतें होंगे तुमने तो अब बछड़ों के जीविका में हीं अड़चन डाल दी है... " 

अब खाने पीने के सारे रास्ते बंद हो जाने के बाद एक दिन 
भूख से व्याकुल हो कर उपमन्यु ने आक  के पत्ते खा लिए, जिससे वो अँधा हो गया और भटकते भटकते एक सूखे कुँए में जा गिरा .

जब बहुत शाम तक उपमन्यु गाय चरा कर नहीं लौटा तो गुरु ने बाकी शिष्यों से पुछा 

 उपमन्यु कहाँ है!!!

शिष्यों ने कहा 

"वो तो गायों को लेकर लौटा हीं नहीं हैं ।।।"

तब गुरु जी ने कहा 

"मैंने उसके खाने पीने के सारे उपाय रोक दिए हैं और लगता है वो इससे नाराज़ होकर कहीं चला गया है... चलो!!  उसे ढूंढें !!"

वो जंगल में अपने शिष्यों के साथ उसे ढूँढने निकलें.. 

उन्होंने जोर जोर से आवाज़ लगाई...


"बेटा उपमन्यु!! तुम कहाँ हो बेटा!!!  आवाज़ दो तुम कहाँ हों!!!! "

उपमन्यु ने गुरु की आवाज़ सुनी और कहा 

"गुरूजी मैं  यहाँ हूँ... इस कुँए के अन्दर... " 

उन्होंने पुछा 

"बेटा तुम कुँए में कैसे गिर पड़े ..."

उसने कहा

"भूख से व्याकुल हो कर मैंने आक के पत्ते खा लिए और  इससे मैं अँधा हो गया और भटकता हुआ इस कुँए में गिर पड़ा ... "

गुरु ने कहा 

"ओह यह तो  बहुत बुरा हुआ ... अब तुम देवताओं के चिकित्सक अश्विनीकुमार का आह्वान करो वही तुम्हारी आँखें ठीक करेंगे ... "

उपमन्यु ने अश्विनीकुमार का आह्वाहन किया. वो आयें और उन्होंने उसे एक पुआ खाने को दिया और कहा 

"तुम  इस पुए को खाओ इससे तुम्हारी आँखें ठीक हो जायेगी ..."

उपमन्यु ने कहा 

 "मैं बिना गुरु को निवेदित किये यह पुआ नहीं खा सकता।।। ... " 


अश्विनीकुमार  देवताओं ने कहा

"पहले जब तुम्हारे गुरु ने हमारी स्तुति  की थी और तब ये पुआ जब हमने उन्हें दिया था तब वो इसे बिना अपने गुरु को निवेदित कियें हीं खा लिए थे अतः तुम भी खा लो ।।। "

उपमन्यु ने फिर भी बिना गुरु को निवेदित किये  पुआ खाने से इनकार  कर दिया.

इससे अश्विनीकुमार  बड़े प्रसन्न हुए  और कहा

 "तुम्हारी आँखें ठीक हो जायेंगी और तुम्हारे दांत भी सोने के हो जायेंगे..."*

ठीक  होकर उपमन्यु अपने गुरु के पास पंहुचा और उन्हें सारी बात बतायी।।। गुरु बहुत खुश हुए और कहा....

"वाह!!  तुम्हारी गुरुभक्ति से मैं बड़ा प्रसन्न हुआ.  तुम्हे भी सारे वेद और शास्त्रों का ज्ञान बिना पढ़े हीं स्वभाववश हो जाएगा !!  अब तुम जा सकते हो... "


और  तीसरा शिष्य था वेद और इसी की कहानी में आता है महाभारत का पहला नेगेटिव करेक्टर या बोले तो  पहला विलन .... तक्षक नाग !!

क्या  नाम सुना है आपने पहले तक्षक नाग का :)* 














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