तो शाम में वन में विचरते हुए कद्रू और विनीता ने उसी उच्चै:श्रव़ा घोड़े को देखा था.…
घोड़े को देखकर कद्रू ने विनीता से कहा
"बहन जल्दी बताओ ये घोडा किस रंग का है???"
विनीता ने कहा
"यह घोडा तो बिलकुल चन्द्रमा के प्रकाश के सामान श्वेतवर्ण* का है ।।"
कद्रू ने तुरंत कहा
"नहीं घोड़े का सारा शरीर तो बिलकुल चंद्रमा के किरणों की तरह उजला है पर इसकी पूँछ काली है, आओ हम इसी बात पे शर्त लगते हैं कि अगर तुम्हारी बात सही हुई तो मैं तुम्हारी दासी बन कर रहूंगी नहीं तो तुम्हे मेरी दासी बनना पडेगा।।। …"
और दोनों ने इस तरह एक दुसरे की दासी बनने की शर्त लगा ली और विचार किया की कल सुबह वो फिर इसी जगह पे घोड़े को दुबारा देखने के लिए आएंगी.
और उसके बाद दोनो बहने ख़ुशी ख़ुशी कल के इंतज़ार में वापस लौट आयी.
कद्रु ने शर्त जीतने के उद्देश्य से अपने सारे सर्प पुत्रों को रात में बुलाकर कहा
"कल सुबह जब हमलोग घोड़े को देखने जाएंगे, उस वक़्त तुम सभी उस घोड़े की पूँछ में जाकर लिपट जाना ताकि उसकी पूँछ काली लगे और मैं शर्त जीत जाऊं और विनीता मेरी दासी हो जाए * …"
जब सर्पों ने आज्ञा मानाने से इंकार किया तो उसने उन्हें श्राप दे दिया कि
"तुम सभी जनमेजय के सर्प-यज्ञ में जलकर भष्म हो जाओगे।।।। .... "*
उसके बाद वो दोनों बहने बड़ी बेचैनी के साथ कल सुबह के इंतज़ार में जा कर सो गयीं …
माता के श्राप* से सारे सर्प घबरा और डर गए और उन्होंने रात में मंत्रणा की और यह निर्णय किया की वो अपनी माता की आज्ञा का पालन करेंगे…
और वो अगली सुबह उच्चै:श्रवा के पूँछ से जाकर लिपट गए जिस कारण जब दोनों बहनो ने सुबह में घोडे को देखा तो उसका पूरा शरीर तो सचमुच श्वेतवर्ण का था पर उसकी पूँछ सर्पों के छल के कारण काली दिख रही थी.
इस तरह कद्रु ने छल से विनीता को शर्त में जीतकर उसे अपनी दासी बना लिया।।
बहुत समय बाद, समय पूरा होने पर एक दिन अचानक बिना विनीता की सहायता के स्वयं हीं दूसरा अंडा फूट गया और उससे महातेजस्वी गरूड़ जी उत्पन्न हुए और उनका आकर और तेज बढतां ही चला गया जिससे चारों तरफ एक कोलाहल मच गया।
देवताओं को लगा मानो स्वयं अग्निदेव* हीं अंडे से प्रकट हो रहें हो और देवतागण हाथ जोड़े अग्निदेव के पास जा पहुंचे और उनसे विनती की कि
"अग्निदेव ! आप कृपया कर के अपना शरीर और न बढ़ाएं क्योंकि आपके तेज से हम सभी भष्म हो रहें हैं!!!…"
अग्निदेव ने कहा
देवगणो!! वो मेरी मूर्ति नहीं है बल्कि ये विनीतानंदन परम तेजस्वी पक्षिराज गरूड़ हैं!! ये सर्पों और असुरों के अहितैषी और आपके मित्र हैं. आइये हम सब चलकर उनका नमन करें !!!
और उन्होंने आकर गरूड़ जी की स्तुति* की.
उनकी स्तुति सुनकर गरूड़ जी ने कहा
"देवताओं आप घबराएं नहीं मैं अभी अपना आकार छोटा और तेज कम कर लेता हूँ … "
एक दिन विनीता जब गरुड़ जी के साथ बैठी हुई थी तो कद्रु ने आकर विनीता से कहा
"समुंद्रलोक के अंदर नागों का बड़ा हीं पवित्र स्थल है जो मुझे देखना है। तुम मुझे और मेरे पुत्रों को अपने पुत्र गरूड की पीठ पर बिठा कर वहां तक ले चलो..... "
गरूड ने माता की आज्ञा से कद्रूँ और उनके सर्प पुत्रों को अपने कंधे पे बिठा लिया और आकाश मार्ग से चल पडें और उनके वांछित स्थान पे उन्हें पहुँचा दिया. इस यात्रा में सर्पों ने बहुत सारे रमणीक दृश्य देखें, और वहां अपने तीर्थस्थल के लवणसागर और मनोहर वन में खूब खेल-कूद और मस्ती करी.…
उन्हें और भी घूमने का मन करने लगा।।। उन्होंने गरूड जी से कहा
"तुमने तो आकाशमार्ग में विचरते हुए और भी कई रमणीक जगहों को देखा होगा।। हमे बारी बारी से उन सभी जगहों पे ले चलो.... "
सर्पों की बात सुनकर गरूड़ जी सोंच में पड़ गए और उन्होंने अपनी माता विनीता से पुछा
"सच सच बताओ हमे सर्पों की हर बातों को क्यों मानना पड़ता है???"
इस पर विनीता ने अपने छल से शर्त हारने वाली बात गरूड को बता दी.
इस पर गरूड जी सर्पों के पास गए और उनसे पुछा
"ठीक ठीक बताओ मैं तुमलोगों को ऐसी कौन सी वस्तु ला दूँ या किस बात का पता लगा दूँ अथवा और कोई भी उपकार जो मैं कर दूँ जिससे मेरी माँ विनीता दासत्व से मुक्त हो जाए।।।।।.… "
तुम हमे अमृत ला दो !!!!*
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