इस बात को सुनकर शौनक जी ने उन्हें आस्तिक ऋषि की कहानी सुनाने को कहा जिन्होंने सर्प यज्ञ में सर्पो की रक्षा की थी*
उग्रश्रवा ऋषि जी ने कहानी शुरू की, जो की अब हमें सर्पों के इतिहास* में ले जाता है....
सतयुग में दक्ष प्रजापति की दो कन्याएं थी*. कद्रु और विनीता।।
अब जैसे हीं समुद्र-मंथन का जिक्र हुआ वहां मौजूद लोगों ने उग्रश्रवा ऋषि से समुद्र-मंथन की कहानी सुनाने को कहा।
उग्रश्रवा ऋषि जी ने कहानी शुरू की, जो की अब हमें सर्पों के इतिहास* में ले जाता है....
सतयुग में दक्ष प्रजापति की दो कन्याएं थी*. कद्रु और विनीता।।
उनका विवाह कश्यप ऋषि से हुआ था.
एक दिन कश्यप ऋषि बड़े प्रसन्न हुए अपनी पत्नियों की सेवा से और उनसे वर मांगने को कहा...
कद्रु ने माँगा
"एक हज़ार तेजस्वी नाग मेरे पुत्र हो"
विनीता ने माँगा
"केवल दो हीं, पर तेज, शरीर और बल-विक्रम में कद्रु के १००० पुत्रों से श्रेष्ठ, केवल दो हीं पुत्र मेरे हो!!!! "
कश्यप ऋषि ने उन्हें अपने गर्भ की रक्षा करने की आज्ञा दी और खुद वन में चले गए...
समय आने पर कद्रुने एक हज़ार और विनीता ने दो अंडे दिए.. !!*
पांच सौ वर्ष के बाद कद्रु के एक हज़ार अण्डों से एक हज़ार पुत्र निकल आये मगर विनीता के दो अंडे वैसे हीं रह गए...
विनीता ने अपने हांथों से एक अंडा फोड़ दिया।।।
उस अंडे के अंदर से एक शिशु निकला जो की आधे शरीर से तो पूरा पुष्ट था मगर नीचे का आधा शरीर अभी कच्चा हीं था.
नवजात शिशु ने बहुत क्रोधित होकर अपनी माता को ये श्राप दिया
" तूने सौत की डाह में आकर मुझे आधे कच्चे में हीं बाहर निकाल दिया है इसलिए अब तू अपने सौत की अगले ५०० वर्ष तक दासी रहेगी और अगर तूने दुसरे अंडे को भी समय से पहले नहीं फोड़ा तो वही बच्चा तुम्हे इस दासत्व से मुक्त करायेगा "
इसके बाद वो आकाश में उड़ गया और सूर्य का सारथि बना.
कद्रु ने माँगा
"एक हज़ार तेजस्वी नाग मेरे पुत्र हो"
विनीता ने माँगा
"केवल दो हीं, पर तेज, शरीर और बल-विक्रम में कद्रु के १००० पुत्रों से श्रेष्ठ, केवल दो हीं पुत्र मेरे हो!!!! "
कश्यप ऋषि ने उन्हें अपने गर्भ की रक्षा करने की आज्ञा दी और खुद वन में चले गए...
समय आने पर कद्रुने एक हज़ार और विनीता ने दो अंडे दिए.. !!*
पांच सौ वर्ष के बाद कद्रु के एक हज़ार अण्डों से एक हज़ार पुत्र निकल आये मगर विनीता के दो अंडे वैसे हीं रह गए...
विनीता ने अपने हांथों से एक अंडा फोड़ दिया।।।
उस अंडे के अंदर से एक शिशु निकला जो की आधे शरीर से तो पूरा पुष्ट था मगर नीचे का आधा शरीर अभी कच्चा हीं था.
नवजात शिशु ने बहुत क्रोधित होकर अपनी माता को ये श्राप दिया
" तूने सौत की डाह में आकर मुझे आधे कच्चे में हीं बाहर निकाल दिया है इसलिए अब तू अपने सौत की अगले ५०० वर्ष तक दासी रहेगी और अगर तूने दुसरे अंडे को भी समय से पहले नहीं फोड़ा तो वही बच्चा तुम्हे इस दासत्व से मुक्त करायेगा "
इसके बाद वो आकाश में उड़ गया और सूर्य का सारथि बना.
सूर्योदय के समय जो प्रातःकालीन लालिमा है वो उसी की झलक है. उस बालक का नाम अरुण हुआ।।।*
एक दिन शाम में दोनों बहने वन में घूम रहीं थी तभी वहां उन्हें आकाश में उच्चैश्रवा* घोडा दिखा।।।यह बड़ा हीं तेजस्वी अश्व था और वो समुद्र-मंथन के समय में समुद्र से निकला था.....
एक दिन शाम में दोनों बहने वन में घूम रहीं थी तभी वहां उन्हें आकाश में उच्चैश्रवा* घोडा दिखा।।।यह बड़ा हीं तेजस्वी अश्व था और वो समुद्र-मंथन के समय में समुद्र से निकला था.....
अब जैसे हीं समुद्र-मंथन का जिक्र हुआ वहां मौजूद लोगों ने उग्रश्रवा ऋषि से समुद्र-मंथन की कहानी सुनाने को कहा।
और उनके आग्रह पे उन्होंने समुद्र-मंथन की अदभुत कथा उन ऋषिगणो को वहां पे सुनाया.
सचमुच अद्भुत कथा है समुद्र मंथन की.
सचमुच अद्भुत कथा है समुद्र मंथन की.
आप बस इमेजिनेशन एंड क्रिएटिविटी देखिए.
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