शौनक जी ने फिर पुछा …
"सुतनन्दन! राजा जनमेजय ने उत्तंक की बात सुनकर अपने पिता की मृत्यु के संबंध में जो कुछ पुछ-ताक्ष की, आप हमे वो बताइये...।।
उग्रश्रवा जी ने कहा …
राजा जनमेजय ने उत्तंक की बात सुनने के बाद अपने मंत्रियों से पुछा
" मेरे पिता के जीवन में ऐसी कौन सी घटना घटी थी, जिससे उनकी मृत्यु हुई!!!"
इस पर मंत्रियों ने कहा
"आपके पिता बड़े पराक्रमी थे . भगवान श्री कृष्ण को उनसे बड़ा प्रेम था. वो पिता के सामान धर्मनिष्ट होकर पुत्रों की तरह अपने प्रजा का पालन करते थे.
"सुतनन्दन! राजा जनमेजय ने उत्तंक की बात सुनकर अपने पिता की मृत्यु के संबंध में जो कुछ पुछ-ताक्ष की, आप हमे वो बताइये...।।
उग्रश्रवा जी ने कहा …
राजा जनमेजय ने उत्तंक की बात सुनने के बाद अपने मंत्रियों से पुछा
" मेरे पिता के जीवन में ऐसी कौन सी घटना घटी थी, जिससे उनकी मृत्यु हुई!!!"
इस पर मंत्रियों ने कहा
"आपके पिता बड़े पराक्रमी थे . भगवान श्री कृष्ण को उनसे बड़ा प्रेम था. वो पिता के सामान धर्मनिष्ट होकर पुत्रों की तरह अपने प्रजा का पालन करते थे.
चूंकि कुरुवंश के परिक्षीण होने पर उनका जन्म हुआ था, इसलिए वो परीक्षित कहलाये. उन्होंने 60 वर्ष तक प्रजा का पालन किया, फिर एक दिन वो सारी प्रजा को दुखी कर इस पृथ्वी से चले गये....
इस पर राजा जनमेजय ने कहा
" मगर आपलोगों ने प्रशन का उत्तर तो दिया हीं नहीं!!! " मैं तो अपने पिता के मृत्यु का कारण जानता चाहता हूँ ??"
मंत्रियों ने कहा
"महाराज!! आपके पिता भी राजा पाण्डु * की तरह शिकार के बड़े प्रेमी थे.
इस पर राजा जनमेजय ने कहा
" मगर आपलोगों ने प्रशन का उत्तर तो दिया हीं नहीं!!! " मैं तो अपने पिता के मृत्यु का कारण जानता चाहता हूँ ??"
मंत्रियों ने कहा
"महाराज!! आपके पिता भी राजा पाण्डु * की तरह शिकार के बड़े प्रेमी थे.
उन्होंने एक दिन एक हिरण को बाण मारा और उसका पीछा करते करते बहुत दूर तक निकल गए। बहुत दूर तक जा कर भी वो उस हिरण को ढूंढ नहीं पाये। वो साठ वर्ष के हो चुके थे, इसलिए थक गए।
भूखे और प्यासे थे। उसी समय उन्हें एक मुनि दिखे। उन्होंने मुनि से पानी माँगा। परन्तु मुनि कुछ नहीं बोले।
उस समय राजा भूख और प्यास से क्षुबित थे, थके थे, और मुनि को कुछ बोलता नहीं देख, उन्हें गुस्सा आ गया. वो यह नहीं जान पाये की मुनि मौनव्रत पे हैं.
उन्होंने उनके अपमान के उद्देस्य से, धनुष से उठाकर, एक मरे हुए सर्प को उनके गले में लटका दिया.
उन्होंने उनके अपमान के उद्देस्य से, धनुष से उठाकर, एक मरे हुए सर्प को उनके गले में लटका दिया.
मुनि इस पर भी कुछ नहीं बोले. राजा परीक्षित भी ज्यों-त्यों उलटे पाँव वापस महल में चले आये.
उन मौनी ऋषि शमीक का पुत्र था श्रृंगी। बड़ा हीं तेजस्वी और महाशक्तिशाली!!
उन मौनी ऋषि शमीक का पुत्र था श्रृंगी। बड़ा हीं तेजस्वी और महाशक्तिशाली!!
जब उसने अपने मित्रों से सुना कि राजा परीक्षित ने मौन और निष्चल अवस्था में बैठे ,उनके पिता का तिरस्कार किया है, तो वो क्रोध से आग -बबूला हो गया। उसने हाथ में जल लेकर आपके पिता को श्राप दिया …
" जिसने मेरे निरपराध पिता के कंधे में मरा हुआ सांप रखा है, उसे तक्षक सांप क्रोधित होकर सात दिनों के अंदर अपने विष से जला देगा। लोग मेरी तपस्या का बल देखें!!!!
श्रृंगी ने लौट कर यह बात अपने पिता शमीक ऋषि को बतायी। उन्हें यह बात सुनकर अच्छा नहीं लगा। उन्होंने आपके पास अपने शीलवान और गुणी शिष्य गौरमुख को भेजा।
गौरमुख ने आपके पिता को यह श्राप वाली बात बतायी और उन्हें सावधान कर दिया.
सातवे दिन जब तक्षक आ रहा था तो उसने कश्यप नामक एक ब्राह्मण को देखा। तक्षक ने पुछा…
"ब्राह्मण देवता आप इतनी शीघ्रता से कहाँ जा रहे हैं और क्या करना चाहते हैं ??
इस पर कश्यप ने कहा
"जहाँ आज राजा परीक्षित को तक्षक सांप जलाएगा, मैं वहीँ जा रहा हूँ। मैं उन्हें तुरंत जीवित कर दूंगा, मेरे पहुँचने पर तो वो सांप जला भी नहीं सकेगा …"
तक्षक ने कहा
मैं हीं तक्षक हूँ. आप उसे जीवित क्यों करना चाहते हैं ?? मेरे डंसने के बाद उसे जीवित कर भी नहीं पाएंगे। आप मेरी शक्ति देखिये !!
इतना कहकर तक्षक ने अपना विष सामने एक वृक्ष पे छोड़ा। वृक्ष जलकर राख हो गया। पल भर में कश्यप ने उस जले वृक्ष को दुबारा हरा भरा बना दिया!!
यह देख कर तक्षक कश्यप की खुशामद करने लगा…" आप क्यों जाना चाहते हैं?? आपको क्या चाहिए??
ब्राह्मण ने कहा
मैं तो धन के लिए जा रहा हूँ। ।
तक्षक ने कहा
आप मुँहमाँगा धन मुझसे ले लीजिये और यहीं से लौट जाइए !!
ब्राह्मण उनसे मुँहमाँगा धन लेकर वहीँ से लौट गया।
इसके बाद तक्षक छल से आया और उसने अपने महल में बैठे, सावधान , आपके धार्मिक पिता को अपने विष की आग से भस्म कर दिया.
" जिसने मेरे निरपराध पिता के कंधे में मरा हुआ सांप रखा है, उसे तक्षक सांप क्रोधित होकर सात दिनों के अंदर अपने विष से जला देगा। लोग मेरी तपस्या का बल देखें!!!!
श्रृंगी ने लौट कर यह बात अपने पिता शमीक ऋषि को बतायी। उन्हें यह बात सुनकर अच्छा नहीं लगा। उन्होंने आपके पास अपने शीलवान और गुणी शिष्य गौरमुख को भेजा।
गौरमुख ने आपके पिता को यह श्राप वाली बात बतायी और उन्हें सावधान कर दिया.
सातवे दिन जब तक्षक आ रहा था तो उसने कश्यप नामक एक ब्राह्मण को देखा। तक्षक ने पुछा…
"ब्राह्मण देवता आप इतनी शीघ्रता से कहाँ जा रहे हैं और क्या करना चाहते हैं ??
इस पर कश्यप ने कहा
"जहाँ आज राजा परीक्षित को तक्षक सांप जलाएगा, मैं वहीँ जा रहा हूँ। मैं उन्हें तुरंत जीवित कर दूंगा, मेरे पहुँचने पर तो वो सांप जला भी नहीं सकेगा …"
तक्षक ने कहा
मैं हीं तक्षक हूँ. आप उसे जीवित क्यों करना चाहते हैं ?? मेरे डंसने के बाद उसे जीवित कर भी नहीं पाएंगे। आप मेरी शक्ति देखिये !!
इतना कहकर तक्षक ने अपना विष सामने एक वृक्ष पे छोड़ा। वृक्ष जलकर राख हो गया। पल भर में कश्यप ने उस जले वृक्ष को दुबारा हरा भरा बना दिया!!
यह देख कर तक्षक कश्यप की खुशामद करने लगा…" आप क्यों जाना चाहते हैं?? आपको क्या चाहिए??
ब्राह्मण ने कहा
मैं तो धन के लिए जा रहा हूँ। ।
तक्षक ने कहा
आप मुँहमाँगा धन मुझसे ले लीजिये और यहीं से लौट जाइए !!
ब्राह्मण उनसे मुँहमाँगा धन लेकर वहीँ से लौट गया।
इसके बाद तक्षक छल से आया और उसने अपने महल में बैठे, सावधान , आपके धार्मिक पिता को अपने विष की आग से भस्म कर दिया.
तक्षक ने हीं आपके पिता को डंसा है, और उसने उत्तंक ऋषि को भी बहुत कष्ट दिया है. आपको जो उचित लगे वो कीजिये। आपके आदेश से हीं, हमने यह दुखद घटना आपको बतायी है।
इस पर राजा जनमेजय ने कहा.…
तक्षक के डंसने से वृक्ष का राख हो जाना और कश्यप को उसका दुबारा हरा भरा बना देना, यह बात आपको कहाँ से मालूम पडी है??
क्योंकि अगर ऐसा है तो कश्यप मेरे पिता को भी जीवित कर सकते थे!! फिर तो तक्षक ने उनको लौटा कर बहुत अनर्थ किया है !! अच्छा !! मैं इसका दंड दूंगा. पर पहले आप इस कथा का मूल तो बताइये??
तक्षक ने जिस पेड़ को डंसा था उस पेड़ पे पहले से हीं एक इंसान सुखी लकड़ियों के ढेर के साथ बैठा हुआ था। यह बात न तो कश्यप को पता थी और न हीं तक्षक को।
इस पर राजा जनमेजय ने कहा.…
तक्षक के डंसने से वृक्ष का राख हो जाना और कश्यप को उसका दुबारा हरा भरा बना देना, यह बात आपको कहाँ से मालूम पडी है??
क्योंकि अगर ऐसा है तो कश्यप मेरे पिता को भी जीवित कर सकते थे!! फिर तो तक्षक ने उनको लौटा कर बहुत अनर्थ किया है !! अच्छा !! मैं इसका दंड दूंगा. पर पहले आप इस कथा का मूल तो बताइये??
तक्षक ने जिस पेड़ को डंसा था उस पेड़ पे पहले से हीं एक इंसान सुखी लकड़ियों के ढेर के साथ बैठा हुआ था। यह बात न तो कश्यप को पता थी और न हीं तक्षक को।
वो भी पेड़ के साथ राख हो गया और जब कश्यप के मंत्र प्रभाव से जब वो पेड़ दुबारा हरा -भरा हुआ तो वो इंसान भी जीवित हो गया.
तक्षक और कश्यप की बातचीत उसने सुनी थी और उसी ने आकर हमको ये सूचना दी.
अब आप हमलोगो का देखा-सुना जानकार जो उचित लगे , कीजिए.…
तक्षक और कश्यप की बातचीत उसने सुनी थी और उसी ने आकर हमको ये सूचना दी.
अब आप हमलोगो का देखा-सुना जानकार जो उचित लगे , कीजिए.…
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