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Thursday, October 23, 2014

अलग

कब तक देखेगा तू दोष अपने आप में
इस ज़माने से हार कर जीतता नहीं कोई। 
गर मान भी ले तू कि वो सही है और तू गलत
तो क्या छोड़ देंगे वो तुझे तेरे पश्चताप के लिए। 
तू सोंचता है की देंगे तेरी सजा वो तुझे ऐसे
जैसे मुक्त हो जाए तू फिर उनसे सदा के लिए। 
की हिम्मत हीं नहीं उनके अन्दर थी ऐसी कभी
कि वो छोड़ दे तुझे अपने आप पे तुम्हे ए दोस्त।।

उनकी तो हसरत हीं यही की तू हो जा उनसा
कबूल उनकी दुनिया उनका जहाँ उनके खुदा। 
उनकी ये दुनिया है मेरे यार तू बस जान ये कि
गलत तेरा कहना की तू और और तेरी जहाँ और। 
यही तो मुसीबत की जो तू ना कहीं जान जाए
राज की ये बात है कहीं जो ये समझ ना जाए। 
रह लेगा तू उनसे अलग रहता रहा है तू जैसे
देखा कभी जो छोड़े हों वो तुझे भी अकेले वैसे।। 

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