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Sunday, June 28, 2015

कर्ण या अभिमन्यु Episode 18

वैशम्पायन जी कहते हैं

जनमेजय अब मैं तुम्हे यह बताता हूँ किन किन देवता और दानवों ने किन किन मन्युष्यो के रूप में जन्म लिया था।

दानवराज विप्रचित्ति जरासंध और हिरण्यकश्यपु शिशुपाल हुआ था।संहल्लाद शल्य और अनुहल्लाद धृतकेतु हुआ था। शिबि दैत्य द्रुम राजा, वाष्कल दैत्य भगदत्त और कालनेमि ने कंश का रूप धारण किया था।

भरद्वाज मुनि के यहाँ बृहस्पति जी के अंश से द्रोणाचार्य अवतरित हुए थे।

वसिष्ठ ऋषि के श्राप से और इंद्र की आज्ञा से आठो वसु गंगा के कोख से राजा शांतनु के यहाँ हुए थे, जिसमे सबसे छोटे थे भीष्म।

अरिष्टा का पुत्र हंस नामक गंधर्वराज, धृतराष्ट के रूप में और उसका छोटा भाई पाण्डु के रूप में, तो सूर्य के अंश धर्म से हीं विदुर पैदा हुए थे। मति का जन्म राजा सुबल की पुत्री गंधारी के रूप में हुआ था। कुंती और माद्री के रूप में सिद्धि और धृति का जन्म हुआ था।

धर्मराज के अंश से युद्धिष्ठर और वायु, इन्द्र तथा अश्विनी कुमारों के अंश से क्रमशः भीमसेन, अर्जुन, नकुल और सहदेव हुए थे।

चन्द्रमा का पुत्र वर्चा अभिमन्यु के रूप में आया था। उसके अवतार के समय चन्द्रमा ने देवताओं से कहा था

मैं अपने प्राण प्यारे पुत्र को नहीं भेजना चाहता हूँ पर इस काम से भी पीछे नहीं हटना चाहता हूँ। इसलिए मेरा बेटा मनुष्य बनेगा तो जरूर पर वो वहां बहुत दिनों तक नहीं रहेगा। वो नर के अवतार अर्जुन के पुत्र के रूप में जन्म लेगा और नर और नारायण के ना रहने पर वो चक्रव्यूह तोड़कर घमासान युद्ध करेगा और बड़े बड़े महारथियों को चकित कर देगा। इसका पुत्र हीं कुरुवंश का वंशधर होगा।

महराज जनमेजय आपके पिता परीक्षित जिन्हें नारायण के अवतार कृष्ण ने जन्म के समय मृत होने के बावज़ूद जीवित कर दिया था उन्ही के पुत्र थे ।

अग्नि के अंश से धृष्टद्युम्न और और एक राक्षस के अंश से शिखंडी का जन्म हुआ था।

द्वापर युग से शकुनि का और कलयुग के अंश से दुर्योधन का जन्म हुआ था।

वासुदेवजी के पिता शूरसेन की एक अनुपम रूपवती कन्या थी जिसका नाम था पृथा। शूरसेन जी ने अग्नि के सामने प्रतिज्ञा की थी कि मैं अपनी पहली संतान अपनी बुआ के संतानहीन पुत्र कुंतिभोज को दे दूंगा। पृथा उनकी सबसे बड़ी संतान थी तो उन्होंने उसे कुंतिभोज को दे दिया।

वो बचपन से हीं राजा कुंतिभोज के यहाँ रहती थी। एक बार दुर्वाशा ऋषि उनके यहाँ आये। पृथा ने उनकी खूब सेवा की जिससे प्रसन्न होकर दुर्वाशा ऋषि ने उन्हें एक मंत्र दिया, जिससे वो किसी भी देवता को कभी भी पुत्र के लिए बुला सकती थी।

एक दिन कौतुहल में उसने सूर्य देव का आह्वाहन किया। भगवान सूर्य ने तुरंत प्रकट होकर गर्भस्थापन किया।

एक सूर्य के सामान बड़ा हीं तेजस्वी, कवच और कुंडल धारण किये सर्वांग सुन्दर बालक जन्मा। कुंवारी होने के कारण लोक लाज के भय से पृथा ने उस पुत्र को एक डब्बे में बंद करके नदी में बहा दिया था। जो अधिरथ सारथि  को मिला। जिसे उसने अपनी संतानहीन पत्नी राधा के पास ले जाकर पुत्र बना लिया और उसका नाम वसुषेण रखा।

बाद में वही कर्ण के नाम से प्रशिद्ध हुआ।

महाबली शेषनाग जी बलराम के रूप में आये तो स्वयं सनातन पुरुष नारायण हीं कृष्ण के रूप में आएं। सनत्कुमार जी प्रद्युम्न के रूप में आये थे और लक्ष्मी ने राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मणी के रूप में जन्म लिया था।

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