StatCounter

Thursday, June 25, 2015

असल आरम्भ Mahabharta Episode 16

वैशम्पायनजी कहते हैं.... 
जनमेजय! जमदंग्निनंदन परशुराम ने इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन किया।

क्षत्रियों का संहार हो जाने के बाद क्षत्रियों की वंशरक्षा तपस्वी, त्यागी, संयमी ब्राह्मणों के द्वारा हुई। फिर कुछ दिनों के बाद पृथ्वी में क्षत्रिय राज्य स्थापित हो गया।*

क्षत्रियों के धर्मपूर्वक प्रजा-पालन के करने से ब्राह्मण आदि सभी वर्ण सुखी हो गए।
समय पर वर्षा होती।बचपन में कोई नहीं मरता और युवावस्था आने तक लोगो में यौन आचार का ज्ञान नहीं होता।* क्षत्रिय बड़े बड़े यज्ञ करते और ब्राह्मणों को खूब दक्षिणा मिलती।

उस समय धन ले कर कोई शास्त्रो का अध्यापन नहीं करता और न हीं शुद्रो की उपस्थिति में कोई वेदोच्चार हीं करता।*

वैश्य दूसरों से बैलों के द्वारा खेती का काम करते। स्वयम् बैलों के कंधे पर जुआ नहीं रखते।* कमजोर और बूढ़े बैलों का भी ध्यान रखते। सभी लोग अपने वर्ण और आश्रम के अनुसार काम करते। यहाँ तक की लता और वृक्ष भी अपने ऋतुकाल में हीं फलते-फूलते।
ये सतयुग था!!

जिस समय यह आनंद छा रहा था, क्षत्रियों में राक्षस उत्पन्न होने लगे।

देवताओं ने युद्ध में उन राक्षसों को बार-बार हराया और उन्हें उनके ऐश्वर्य से च्युत (मरहूम) कर दिया।*
पर राक्षस ना केवल मनुष्य बल्कि बैलों, घोड़ो, गधो, ऊँटों, भैंसो और हिरणों में भी पैदा होने लगे। पृथ्वी उनके भार से त्रस्त हो गयी और उसका वजन इतना बढ़ गया की कच्छप राज और शेषनाग भी उनका भार उठाने में असमर्थ हो गए।

ऐसे में पृथ्वी ब्रह्मा जी के पास आयी। ब्रह्मा जी ने शरणागत पृथ्वी से कहा...

"देवी! तू जिस कार्य के लिए मेरे पास आयी हो मैं उसके लिए देवताओं को नियुक्त करूंगा।"

जिसके बाद ब्रह्मा जी ने देवताओं, अप्सराओं और गंधर्वो को बुलाया और कहा....

"तुमलोग पृथ्वी का भार उठाने के लिए अपने-अपने अंशो से अलग अलग पृथ्वी पर अवतार लो।" 

इसके बाद सारे लोग नारायण के पास गए और इंद्र ने उन्हें धरती पर अवतार लेने के लिए प्रार्थना की।
भगवान् ने तथास्तु कह कर प्रार्थना स्वीकार की। फिर विष्णु* ने इन्द्र के साथ अवतार ग्रहण के विषय में परामर्श किया और सभी अपने अपने लोक वापस लौट गए।*

अब देवता लोग अपने अपने अंश से पृथ्वी पर अवतार ग्रहण करने लगे और असुरों का संहार करने लगे।


NEXT EPISODE
जनमेजय ने कहा
"भगवन! मैं देवता, दानव, गन्धर्व, अप्सरा, मनुष्य, यक्ष, राक्षस और समस्त प्राणियों की उत्पत्ति सुनना चाहता हूँ। आप कृपा कर के एकदम प्रारम्भ से हीं यथावत वर्णन कीजिये...."

No comments:

Post a Comment