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Saturday, July 18, 2015

देख लो

पहले बारिश होती थी
और हम बहती हुई नालियों में कागज की कश्ती चलाते थे
अब ग्रीन हो गए हैं
और रेनी डे में एनएफएस की सड़को में फेरारी चलाते हैं.

पहले हम बच्चे थे
और बोर हो जाने पर बैठकर ला मिजरेबल पढ़ते थे
अब हम बड़े हो गए हैं
और बोर होकर फेसबुक में बैठकर कविता लिखते हैं.

कोई बात नहीं यह कि
जो मैं ये कहता रहता हूँ कि सब बदल गया है
कहने से होता क्या है
जो बदलना है वो तो वैसे भी बदल हीं जाता है.

देखो मैंने बोल हीं दिया
और अपने सोंच को ज़माने के सामने खोल हीं दिया
तुम समझो या नासमझो
तुम्हारे एक सवाल का जवाब तो मैंने दे हीं दिया.


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