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Friday, July 4, 2014

तेरे लिए

मैंने हकीकत को फ़साने से मिटाने क़ी ठानी है
लो आज फिर मैंने शराब पीने की ठानी है
पीना पाप है और जानता हूँ रूठ जाओगी तुम
पर एक बार फिर से मैंने तुम्हे मानाने की ठानी है

Tuesday, July 1, 2014

उसका दरबार

क्यों तुझे खुद से कोई प्यार नहीं
क्यों ख़ुशी के लिए तू बेकरार नहीं
अगर बुलाया नहीं तुझे उसने प्यार ने
तो सोंच भला आया कैसे तू संसार में।।

तुम्ही दूर भागते थे उसके संसार से
अभी भी बुलाता तुझे वह प्यार से
एक बार देख तो जरा ऐतबार से
ऐसा भी क्या डरना उसके संसार से।।  

सब हमेशा रहें हैं उसीके अधिकार में 
एक बार फिर पड़ उसके प्यार में
की तैयार खड़ा वो तेरे इंतजार में
सुना है देर नहीं उसके दरबार में ।।